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मेरा देश और मेरी हैसियत

मेरा देश और मेरी हैसियत
मेरा देश और मेरी हैसियत
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मैं एक हिन्दुस्तानी हूँ और इस्लाम धर्म को मानता हूँ ! यही पहचान मेरे अब्बा और उनके अब्बा की भी थी !
हम हमेशा से जानते हैं की हमारा जो कुछ भी है सब यहीं है …हिंदुस्तान में !
हमारा खून और खमीर सब इसी मिटटी की देन है , हम यहीं जन्मे और यहीं पर मर भी जायेंगे !
दरसल हम यही पर मरना इसी लिए चाहते हैं की हम फिर इसी मिटटी में किसी अनाज और पानी की शकल में दोबारा पैदा हों और फिर इसी मिटटी में चले जाएँ ! यही हमारा घर है , यही हमारी दुनिया है और यही हमारी जन्नत भी है !
देश में मरने से अफज़ल देश के लिए मरना है , हमारे अब्बा ऐसा कहा करते थे ! हमारे अब्बा …. जो १५ अगस्त को सुबह सवेरे उठ कर नहा कर नमाज़ पढने के फ़ौरन बाद हमें लेकर मुल्क के फौजियों की परेड देखने के लिए और प्रभात फेरियों में शामिल होने के लिए निकल जाते थे !
और रास्ते भर में हम पर ये सब वाजेह कर देते थे की आज क्या है ? ये दिन किन संघर्षों की देन है ! अब हमें ये दिन कैसे मनाना है !
हमें गंगा के पानी से वुजू करने की इजाज़त दी गई थी और हमारे ऐसा करने से इसका पानी कभी घट गया हो , ऐसा कोई साबित नही कर सकता !
हमारी मस्जिदें यहाँ कसीर तादाद में बनाई गई और ऐसा करने से कभी वह की ज़मीन धंस गई हो ऐसा कोई नहीं कह सकता !
हम मरने के बाद इसी ज़मीन में दफन हुए और हमारे दफन हो जाने के बाद इस ज़मीन ए हिंदुस्तान ने हमें उगल के थूक दिया हो , ऐसा कहीं हुआ है क्या ?
ऐसा हो सकता था , क्या अंग्रेजों के साथ ऐसा नहीं हुआ ? आज कहाँ हैं वो ? उनके ज़र्रा बराबर भी निशान अब कहाँ बाक़ी है हमारे मुल्क में ?

मगर हमारे साथ ऐसा नहीं हुआ , क्योंकि ये ज़मीन जानती है की हम इसी की मिलकियत हैं ! हम जो कुछ कमाएंगे इसी को दे जायेंगे और जहाँ भी चले जाएँ थके मांदे …अपनी आँख मलते हुए इसी की गोद में चले आयेंगे !
हमने सुना है की जब रसूलल्लाह (स०) के नवासे को कर्बला के मैदान में क़त्ल करने को घेर लिया गया था और उनपर सारे अरब की ज़मीन को तंग कर दिया गया था तो उन्होंने यजीद लानातुल्लाह की फ़ौज से कहा ” क्यों खूंरेजी पर अमादा हो ? मुझे रास्ता दे दो की मैं तम्हारी सरहदों से दूर हिंदुस्तान चला जाऊं , बेशक वह मुस्लमान नहीं रहते मगर इंसान रहते हैं ! ”

अफ़सोस की वो यहाँ ना आ सके मगर हम उनका अलम उठाये हुए एक हज़ार दो सौ साल पहले उनकी सपनो की ज़मीन हिंदुस्तान में वारिद हुए ! और फिर घुल मिल से गए ! हमारी रगों में हिन्दुस्तानी खून पहले मिला फिर घुला और ऐसा घुल मिल गया की गंगा के पानी से वुजू करके हमने काबे की तरफ सजदा करके ये सन्देश भिजवा दिया की ” हे बैतुल्लाह ( अल्लाह के घर ) ! अब हम अल्लाह (सुब०) की अमन ओ अमान की ज़मीन पर आ पहुंचे हैं ! हम यहीं के होकर रह जायेंगे , आ सके तो तुमसे मिलने उम्र भर में कभी आ जायेंगे ! मगर अब यही रहेंगे ! ”
और हम यहीं बस गए , मुस्लमान हिन्दुस्तानी हो कर भी मुसलमान बना रहा ! और अरबी ने हिंदी के मेल से उर्दू को जन्म दिया !
और इस तरह हम यहीं रच बस गए !
….और हम अच्छा रचे बसे और घुले मिले हुए थे की अचानक नै आंधी आ गई ! कल के शराबी और ओबाश लौंडो में से कुछ लाल पीली पट्टीयां बाँध के ये तय करने निकल आये की कौन देश भक्त है और कौन नहीं और कुछ हरी पट्टीयां बाँध के बारूद लेने के लिए पड़ोस की उस लड़ाका औरत सिफत मुल्क के कोठे पे जा धमकने लगे जो सिर्फ इंसानों के खून में डूबी हुई वो रोटी खाने का आदी है जो उसे पश्चिमी देशों से खैरात में मिलती हैं की शर्त ये है की इंसानों का खून के शोरबे का इन्तेजाम खुद से कर लें !

और फिर एकता , भाई चारा और फलाह ओ बहबूदी ए मदर ए वतन जैसे हिन्दुस्तान के बहोत कीमती खजानों को धीमी आंच पर जलाया जाने लगा ताकि इसकी गर्मी से हुकूमतों की गद्दी गर्म बनी रहे !
कभी मंदिर मस्जिद का छौंका लगाया गया तो कभी गाय गोरू का भी बघार लगाया गया ताकि खाने वालों को दिलासा मिल जाये की मुल्क बहोत जोर शोर से भूना पकाया जा रहा है , जल्द ही आपको खाने को मिल जायेगा !
लोगों को वन्दे मातरम् कहने में शर्म महसूस होने लगी और लोग जानवरों के ताक़द्दुस पर इंसानों का सर भेढ़ बकरियों की तरह से काटने लगे !
….. अल्लाह (स०) की पनाह ऐसे वक़्त से है जब हिन्दुस्तानी हिन्दुस्तानी की जान का दुश्मन हो जाये !

राखी जैसी पाक रस्म को इजाद करने वाली कौम आज औरतों बच्चों को क़त्ल करके और कौन सी इबारत लिखना चाहती है , मैं नहीं जानता !
मैं ये भी नहीं जानता की अपनी कौल और वादे पर सर कटवा लेने वाली कौम कैसे अपनी मिटटी को उस नापाक पडोसी के हाथ बेच दे रहा है जिस मिटटी में उसके बाप और मा दफन हैं ?

मगर जो भी हो , हम जितना हो सकेगा अपने मुल्क के ताक़द्दुस को बचायेंगे ! इसे बाँटने नहीं देंगे ! चाहे इसके लिए किसी का पैर पकड़ना पड़े या सर काटना पड़े , हमें गुरेज़ नहीं !
बस ये याद रखिये आज आप जो कुछ अपने देश और देशवासियों के साथ कर रहें हैं, कल को जब आपको हमारे मुल्क की तारिख नंगा करेगी तो आपकी अपनी नस्लें भी आपके ऊपर थूकेंगी !

हम हिन्दुस्तानी हैं , खामोश हैं ! आज आपका जलवा है उड़ लीजिये , मगर हमारे होते हुए इस राम चन्द्र और इमाम हुसैन के प्यारे हिंदुस्तान पर आंच आये ऐसा मुमकिन नहीं है !

जय हिन्द वनदे मातरम् !

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